इसबगोल | Psyllium

खाद्य उत्पादन –

इसबगोल का पौधा :

इसबगोल का पौधा :

इसबगोल का पौधा छोटे तने वाला होता है और मुख्य रूप से रबी के मौसम में उगाया जाता है। इसबगोल का पौधा तीन से चार फीट उंचा होता है और इसके पौधों पर गेहूं की तरह बाली आती है। मध्यम रेतीली मिट्टी इस पौधे के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। भारत में इसबगोल की खेती पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य-प्रदेश राज्यों में की जाती है। भारत अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया में इसबगोल का निर्यात भारी मात्रा में करता है वहीं यूरोपीय संघ के देश इसके प्रमुख आयातक हैं।

इसबगोल की रोपाई :

इसबगोल की रोपाई :

इसबगोल की रोपाई बीज के रूप में की जाती है। एक हेक्टेयर खेत में तक़रीबन 4 से 5 किलो बीज लग सकते हैं। इसके बीजों की रोपाई समतल और मेड़ दोनों तरह की भूमि पर कर सकते हैं। समतल भूमि में बीजों की रोपाई छिड़काव करके और मेड़ पर रोपाई ड्रिल के माध्यम से की जाती है। इसके बीजों के रोपाई का समय अक्टूबर से नवंबर माह के बीच में करना उत्तम माना जाता है। इसके बीजों की बुवाई कतारों में की जाती है, जिनकी दूरी करीब 25 से 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

इसबगोल की कटाई :

इसबगोल की कटाई :

इसबगोल की रोपाई के तक़रीबन 110 से 120 दिन बाद इसकी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के समय इसमें गेहूं जैसी बालियां आती है जिसमें इसबगोल के बीज होते हैं। जब इसके पौधों पर लगी पत्तियां सूखकर पीला रंग ले लेती हैं तब इसबगोल की कटाई या तुड़ाई की जाती है। इस पौधे की डालियों में जो बीज लगे होते हैं उनके ऊपर सफ़ेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है। इसे ही इसबगोल की भूसी (Psyllium husk) कहते हैं।

बाजार का भाव :

बाजार का भाव :

इसबगोल की रोपाई के तक़रीबन 110 से 120 दिन बाद इसकी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के समय इसमें गेहूं जैसी बालियां आती है जिसमें इसबगोल के बीज होते हैं। जब इसके पौधों पर लगी पत्तियां सूखकर पीला रंग ले लेती हैं तब इसबगोल की कटाई या तुड़ाई की जाती है। इस पौधे की डालियों में जो बीज लगे होते हैं उनके ऊपर सफ़ेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है। इसे ही इसबगोल की भूसी (Psyllium husk) कहते हैं।

उपयोग :

उपयोग :

1) भूसी में म्यूसीलेज होता है जिसमें जाईलेज, ऐरिबिनोज एवं ग्लेकटूरोनिक ऐसिड पाया जाता है। इसके बीजों में 17 से 19 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ईसबगोल की भूसी में ही सबसे ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं लेकिन भूसी रहित बीज का उपयोग पशु और मुर्गियों के आहार के रूप में भी किया जाता है।

2) इसबगोल की फसल की कटाई करते समय इसकी पत्तियाँ हरी रहती है, जो कि पशुओं के हरे चारे के रूप में काम आती है, इसके बीज के ऊपर पाया जाने वाला पतला छिलका ही औषधी उत्पाद है।

इसबगोल को सेवन –

त्रिफला और इसबगोल मिलाकर सेवन
गर्म पानी में एक से दो चम्मच
रात में खाना खाने से पहले खाएं
दही चीनी के साथ सेवन

इसबगोल के फायदे –

दस्त, गैस की समस्या दूर करना
आंतों को साफ करना
ब्लड शुगर कम करे
ओवरइटिंग रोकने में मददगार

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