गुच्छी मशरुम

गुच्छी मशरुम

मशरूम से बने व्यंजन तो हम सब ने जरूर खाए होंगें लेकिन मशरूम की किस्मों के बारे में जानकारी कम ही होती है। आज बात होगी ‘गुच्छी मशरूम’ के बारे में। गुच्छी मशरूम कई औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इसका औषधीय नाम मार्कुला एस्क्यूपलेटा है। गुच्छी मशरूम को स्पंज मशरूम के नाम से जाना जाता है जो स्वाद में बेजोड़ होता है। भारत और नेपाल में इसे स्थानीय भाषा में छतरी, टटमोर या घुंघरू कहा जाता है। गुच्छी कश्मीर, चंबा, कुल्लू, शिमला, मनाली समेत हिमाचल प्रदेश के कई जिलों के जंगलों में कुदरती पाई जाती है।

बिही

बिही

बिही दिखने में और आकार में सेब और नाशपाती जैसा दिखता है जो रंग में पीले रंग का होता है। बिही एक पहाड़ी फल है जो ईरान, उजबेक्सितान, मोरोक्को, चीन और तुर्की देशों में पाया जाता है। भारत में बिही कश्मीर, जम्मू और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है। भारत के बाकि हिस्सों में बिही नहीं पाया जाता लेकिन कश्मीर में डल झील के किनारे बिही के पेड़ अच्छी खासी मात्रा में पाए जाते हैं। कहा जाता है कि भारत में जब अरब लोग व्यापार के लिए आए तो बिही को अपने साथ लाए थे।

जखिया / पहाड़ी सरसों

जखिया / पहाड़ी सरसों

उत्तराखंड के पहाड़ों में घूमने जाते समय एक किस्सा बड़ा सुना जाता है कि उत्तराखंड से दिल्ली की तरफ जाने वाली बसों के यात्रियों के बैग की चैकिंग हो जाए तो ज्यादातर के झोलों में जखिया (पहाड़ी सरसों) की पोटली जरूर मिल जाएगी। ये बात भले ही मज़ाक में कही गई हो लेकिन पहाड़ियों के लिए जखिया के प्यार को आप नकार नहीं पाएंगें। जखिया एक पहाड़ी पौधा है जिसकी खेती कम ही की जाती है लेकिन मिलती घर घर के व्यंजनों में इसकी उपस्थिति जरूर मिलती हैं। इसका कारण है कि ये एक जंगली या खरपतवार वाला पौधा है जो खाली जगहों, नदी के किनारों, खेतों की मेड़ पर बरसात के दिनों में खुद से ही उग आते हैं।

सुपारी

सुपारी

सुपारी को betel nut के नाम से भी जानते हैं। इसके ताड़ के बीज की लोकप्रियता पूरे भारत में काफी है। इसको कुछ संस्कृत रीति -रिवाज़ों में भी इस्तेमाल किया जाता है। जैसे पूजा -पाठ वगैरह में। वैसे तो इसकी फसल पूरे भारत में होती है लेकिन दक्षिण भारत में सबसे ज़्यादा फसल देखी जाती है। ये भले ही स्वास्थ में थोड़ा हानिकारक हो लेकिन इसके बावजूद इसे पान में सबसे ज़्यादा उपयोग किया जाता है। इसके महत्व का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की कुछ शहरों का नाम भी इसके नाम पर रखा गया है। जैसे गुवाहाटी। जी हाँ ! सुपारी को संस्कृत में ” गुवाका ” कहते हैं।दक्षिणी पट्टी के कई घरों में, इन्हें घर के बगीचे में उगाया जाता है।

गोंगुरा

गोंगुरा

गोंगुरा एक पत्तेदार पौधा है। जिसे कई तरीकों से उपयोग किया जाता है, जिसमें सबसे लोकप्रिय है इसका अचार। गोंगुरा की दो किस्में पाई जाती हैं, हरे तने वाले पत्ते और लाल तने वाले पत्ते। लाल तने वाली किस्म हरे तने वाली किस्म की तुलना में अधिक खट्टी होती है। यही कारण है कि इनका उपयोग अचार के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है।
दक्षिणी पट्टी के कई घरों में, इन्हें घर के बगीचे में उगाया जाता है।

साबूदाना

साबूदाना

भारत में साबूदाने को इतना शुद्ध माना जाता है कि इसे लोग व्रत में फलाहाकर के रुप में खाते हैं। इसकी खिचड़ी, खीर, पापड़ और अन्य व्यंजन वनाए जाते हैं जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। यह पौष्टिक आहार इतना हल्का होता है कि बहुत जल्दी पच जाता है. इसे व्रत में खाने का एक मुख्य कारण यह है कि इसमें कार्बोहाइड्रेट की अधिक के साथ साथ कैल्शियम और विटामिन-सी भी पाया जाता है.

कुल्थी

कुल्थी

कुल्थी, जितनी भी दालों के बारे में आप सोच सकते हो उन सबसे अधिक प्रोटीन युक्त हात है। भारत में जितनी तरह की दालें पकाई जाती हैं शायद उनमें से सबसे ज्यादा समय जिस दाल को पकने में लगता है वो है कुल्थी। और इसी में इस कठोर फसल की सुंदरता और स्वास्थ्य निहित है। कुल्थी की दाल, जिसे मीट से भी ज्यादा पौष्टिक कहा जाता है, जिसे हॉर्स ग्राम के नाम से जाना जाता है उस दाल को दक्षिण भारत की महत्वपूर्ण फसल माना गया है।

गोबिंदोभोग चावल

गोबिंदोभोग चावल

प्राचीन समय से भारतीय थाली में दाल और चावल परोसने की परंपरा रही है। चावल की दुनियाभर में तकरीबन चालीस हजार से ज्यादा किस्में हैं। चावल के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। गोबिंदभोग,चावलों की सबसे प्रसिद्ध किस्मों में से एक है। यह नाम एक भारतीय स्थानीय देवता गोविंदजी से लिया गया है, जिन्हें यह भेंट के रूप में परोसा गया था।