कत्था | Kattha
कत्था के विषय में –
पान खाने की परंपरा भारत देश में काफी पुरानी है। मुख्य रूप से उत्तर-प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा जैसे पूर्वी भारत के राज्यों में पान खाया जाता है। इन राज्यों के अलावा आंध्र-प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी लोकप्रिय है। इस हिसाब से पान खाना देश के लगभग सभी हिस्सों में लोकप्रिय है।
कत्था क्या होता है :
कत्था खैर के पेड़ की लकड़ी से निकाला जाता है। इसे अंग्रेजी में black catechu या black cutch कहते हैं। यह बिहार, राजस्थान, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और नेपाल के जंगलों में व्यापक रूप में उगने वाला एक मध्यम पर्णपाती पेड़ है। इस पेड़ की कई किस्में पायी जाती हैं। बबूल भी इसी परिवार का पेड़ है। कत्था के पेड़ की छाल, टहनी और लकड़ी के औषधी के रूप में किया जाता है।
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कत्था कैसे बनाया जाता है :
खैर बबूल की प्रजाति का ही पेड़ है। इसकी टहनियां पतली व सीकों के जुड़ी होती हैं, जिसमें छोटे-छोटे पत्ते लगते हैं। कत्थे की टहनियां कांटेदार होती हैं। इसके फूल छोटे व सफेद या हल्के पीले रंग के होते हैं। पेड़ की छाल आधे से पौन इंच मोटी होती है और यह बाहर से काली भूरी रंग की और अंदर से भूरी रंग की होती है।
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जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इसे काटकर छोटे-छोटे टुकडे़ बनाकर गर्म पानी में पकाया जाता है। गाढा होने के बाद इसे चौकोर बर्तन में सुखाया जाता है और वहीं इसे काटकर चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसे कत्था कहते हैं। पान की दुकान वाले इसे किसी बर्तन में रखकर पानी के साथ मिलाते हैं और फिर पान के पत्तियों पर लगा कर परोसते हैं।
कत्थे में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कत्था तासीर में ठंडा और स्वाद में कड़वा, तीखा व कसैला होता है। अगर इसका सीमित मात्रा में इस्तेमाल किया जाए, तो यह शरीर की कई समस्याओं को दूर कर सकता है।
कत्था के उपयोग
पान पर लगाने में इस्तेमाल
पाचन सुधारने के लिए उपयोग
फोड़े, फुंसियों वाली तव्चा पर लगाएं
कत्था के फायदे
गले में खराश से राहत दिलाएं
घाव जल्दी भरे
गले, मुंह और मसूड़ों के दर्द में आराम