मैसूर पान | Mysore Betel leaf
मैसूर पान के विषय में –
लगभग 50 साल पहले, मैसूर पान के पत्ते मैसूर महाराजा के बगीचों में उगाए गए थे और बाद में पुराने अग्रहारा में पूर्णिया चूल्ट्री से विद्यारण्यपुरम जंक्शन तक फैले हुए थे, जो मैसूर में मैसूर-नंजनगुड रोड को जोड़ता है। धीरे-धीरे यह मैसूर के आसपास लगभग 500 एकड़ में फैल गया। इन पत्तों को पान के रूप में तंबाकू के साथ या बिना तंबाकू के भी खाया जाता है।
पान का पौधा एक उष्णकटिबंधीय पौधा है, इसलिए इसे ठीक से विकसित होने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। यह छाया में और 10 से 40 डिग्री के तापमान में सबसे अच्छा पनपता है। गर्म, आर्द्र जलवायु के साथ-साथ मिट्टी में काली मिट्टी की उपस्थिति मैसूर पान के पत्ते को विशेष गुण प्रदान करती है।
इसीलिए मैसूर के पान के पत्तों का स्वाद बाकि जगहों के पान के पत्तों से अलग होता है। इसके स्वाद में तीखापन और सोम्यता दोनों एक साथ होता है। इसकी पत्ती में एक चिकनी बनावट स्वाद में गर्म और तेज होता है। मैसूर पान की खासियत है कि ये दिल के आकार का पत्ता होता है। इसके खास स्वाद के कारण भारत सरकार की तरफ से साल 2005 में जीआई टैग भी दिया गया।
मैसूर पान को मिला ‘जीआई टैग’ –
• साल 2005 में मैसूर पान पत्ता को जीआई टैग की सूची में शामिल किया गया।
• इसे ‘मैसूर चिगुरेले’ (मैसूर अंकुरित पत्ता) भी कहा जाताहै।
• मैसूर की गर्म और नमी वाली जलवायु के कारण इसका स्वाद अनोखा होता है।
• लगभग 50 साल से मैसूर में पान की खेती की जा रही है।