हिमालयन फरन | जिम्बू | जम्बू | Hiamalayan Faran
हिमालयन फरन विषय में
हिमालयन प्रदेशों में अनगिनत जड़ी-बूटियाँ पाईं जाती हैं जो हमारे स्वास्थ और पहाड़ी जीवन और दिनचर्या का हिस्सा बनती हैं। ऐसी ही पहाड़ी जड़ी-बूटी है ‘हिमालयन फरन’ जो उत्तराखंड में अधिक तौर पर पाई जाती है। यह जड़ी-बूटी कई स्वास्थय लाभों के मामले में अविश्वसनीय है। फरन के बारे में दिलचस्प जानकारी ये है कि ये प्याज परिवार से संबंधित है और उत्तराखंड की अल्पाइन घास के मैदानों में मूल रूप से पाई जाती है।
ये जड़ी -बूटी प्याज अथवा लहसून के पौधे जैसी होती है। ये पौधा 10,000 फीट से अधिक ऊँचाई के हिमालय क्षेत्रों में बारहमास पाया जाता है। इसमें लाल रंग के फूल आते हैं। इसके फूल का प्रयोग मसाले के रूप में व्यंजनों का स्वाद दोगुना करने के लिए किया जाता है। इस जड़ी -बूटी के जमीन से ऊपर दिखने वाले भाग को काट कर छाँव में हवा की सहायता से भली -भांति सुखाया जाता है। इसके बाद संरक्षित कर के रख लिया जाता है। इस तरह से संरक्षित किये हुए जम्बू फरण का प्रयोग मसाले एवं औषधीय उपयोग में किया जाता है।
फरन की सौ से अधिक प्रजातियां :
उत्तराखंड के लोग बेहतर अन्य मसालों के साथ स्वाद और स्वास्थ्य लाभों की वजह से इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल करते हैं। फरन ऐसी जड़ी-बूटी है, जिसके दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सौ से अधिक प्रकार पाए जाते हैं। इन सभी प्रकार के फरन में मानव स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले औषधीय गुण हैं। उत्तराखंड की घाटी में उगाए जाने वाले फरन में एक अनोखा स्वाद है, जो इसे अन्य प्रकारों से अलग बनाता है। वहां की मिट्टी और जलवायु स्थिति इसके स्वाद और पौधे के औषधीय गुणों को बढ़ाती है।
‘हिमालयन फरन’ के कई नाम :
फरन जड़ी-बूटी को कई नामों से जाना जाता है जैसे – ‘हिमालयन फरन’, जम्बू, नेपाल में जिम्बू नाम से जाना जाता है। इसका वनस्पतिक नाम एलियम स्ट्राकेयी है। बेसन करी से लेकर आलू के गुटकों और कई अन्य सब्जियों में इस मसाले को डाला जाता है। इसे खाने जायका बढ़ाने और खाने को हेल्दी बनाने के लिए किया जाता है। यह हिमालयी बूटी डायबिटीज से लेकर पित्त की समस्याओं के इलाज में मददगार है। यह आपके खून को साफ करने और कई असंख्य फायदों से भरपूर है।
फरन का इस्तेमाल :
उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में खुद से उगने वाले फरन को मुख्य रूप से उत्तराखंड मे मसाले के तौर पर किया जाता है। पहाड़ी जीवन और दुर्लभ क्षेत्रों के कारण यहां रहने वाले लोग स्वास्थ-सुविधाओं की पंहुच कम होने के कारण स्थानीय लोग फरन का इस्तेमाल कई बीमारियों के उपचार के लिए करते हैं। उत्तराखंड में फरन ज्यादातर देहरादून और चमोली जिले में पाया और इस्तेमाल किया जाता है। इस जड़ी-बूटी की खेती जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर के महीनों में की जाती है। लेकिन इसका इस्तेमाल इन्हें सूखाकर आने वाले कई महीनों तक किया जाता है।
हिमालयन फरन का सेवन
पके खाने पर छिड़क कर
तड़का लगाने में इस्तेमाल
आलू के गुटको में मिलाकर
दाल के तड़के में मिलाएं
सूप, करी, आचार में मिलाएं
हिमालयन फरन के फायदे
पेट की गैस में आराम
पाचन बेहतर करे
खून को साफ करे
ग्लूकोज लैवल नियंत्रित करे
खांसी-जुकाम में राहत दिलाए