कालमेघ | Kalmegh Plant
कालमेघ के विषय में –
प्राकृतिक वनस्पति की बात की जाए तो हमें अगिनत वनस्पतियाँ और जड़ी-बूटियाँ मिलती है अपनी प्रकृति से। लेकिन इन जड़ी-बूटियों और जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी कम ही होती है। ऐसा ही एक पौधा है कालमेघ। कालमेघ के पौधे का इस्तेमाल भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में लंबे समय से किया जा रहा है।
स्वाद में कड़वा व औषधीय गुणों से भरपूर कालमेघ को ‘बिटर के राजा’ के नाम से भी जाना जाता है।इसका तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं। इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं। इसके फूल का रंग गुलाबी होता है।
इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधी के रूप में होता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। कालमेघ सामान्य बुखार व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने से लेकर पेट की गैस, कीड़े, कब्ज, लिवर की समस्याओं इत्यादि के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह पौधा भारत एवं श्रीलंका का मूल निवासी है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है।
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भारत में यह पौधा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश में अधिक पाया जाता है। कालमेघ का उपयोग मलेरिया, ब्रोंकाइटिस रोगो में किया जाता है। इसका उपयोग यकृत सम्बन्धी रोगों को दूर करने में होता है। इसकी जड़ का उपयोग भूख लगने वाली औषधि के रूप में भी होता है। कालमेघ का उपयोग पेट में गैस, अपच, पेट में केचुएँ आदि को दूर करता है और इसका रस पित्तनाशक है।
कालमेघ में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पाई जाती है और यह मलेरिया और अन्य प्रकार के बुखार के लिए रामबाण दवा है। इसके नियमित सेवन से रक्त शुद्ध होता है तथा पेट की बीमारियां नहीं होतीं। इसके अलावा सरसों के तेल में मिलाकार एक प्रकार का मलहम तैयार किया जाता है जो चर्म रोग जैसे दाद, खुजली इत्यादि दूर करने में बहुत उपयोगी होता है। इसके नियमित सेवन से रक्त शुद्ध होता है तथा पेट की बीमारियां नहीं होतीं।
इसका उपयोग मुख्य रूप से मधुमेह और डेंगू बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। यह बूटी तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है जिसे वहां नीलवेंबू काषायम कहा जाता है। इसका उपयोग डेंगू और चिकनगुनिया बुखार के लिए किया जाता है। कालमेघ पुराने बुखार के इलाज में बहुत लाभकारी है। वायरल बुखार में लिवर प्रभावित होता है, ऐसे में कालमेघ लिवर की सुरक्षा करता है और मरीज को तेजी से ठीक होने में मदद मिलती है।
कालमेघ का सेवन
चूर्ण बनाकर
काढ़ा बनाकर
पत्ते, जड़ का सेवन
रस या तरल रूप में
कालमेघ के उपयोग
सूजन कम करना
डेंगू बुखार में इलााज
दाद, खाज, खुजली दूर करे
रक्त और पेट को साफ करे